Introducing San Francisco History of the Tower of London Grand Central Station Visitors Guide

Sunday, October 9, 2011

मैं भाव सूची उन भावों की

मैं भाव सूची उन भावों की, जो बिके सदा ही बिन तोले
तन्हाई हूँ हर उस ख़त की, जो पढ़ा गया हो बिन खोले ||


हर आंसू को हर पत्थर तक, पहुचाने की लाचार हूक
मैं सहज अर्थ उन शब्दों का, जो कहे गए हैं बिन बोले 
जो कभी नहीं बरसा खुल कर,  मैं उस बादल का पानी हूँ
लव कुश ही पीर बिना गाई, सीता की राम कहानी हूँ 
मैं भाव सूची .....................................................||


जिनके सपनों के ताजमहल, बनने से पहले टूट गए
जिन हाथों में दो हाथ कभी, आने से पहले छूट गए
धरती पर जिनके खोने और, पाने की अजब कहानी है 
किस्मत की देवी मन गयी, पर प्रणय देवता रूठ गए
मैं मैली चादर वाले उस, कबिरा की अम्रत वाणी हूँ
लुव कुश की पीर ..............................................||


कुछ कहते हैं मैं सीखा हूँ, अपने जख्मो को खुद सीकर
कुछ कहते हें में हँसता हूँ , भीतर भीतर आंसू पीकर
कुछ कहते हैं में हूँ विरोध से, उपजी एक खुद्दार विजय 
कुछ कहते हैं मैं रचता हूँ, खुद मैं मरकर खुद में जीकर 
लकिन मैं हर चतुराई की, सोची समझी नादानी हूँ
लुव कुश की पीर ..............................................||

By Dr. Kumar Vishvash ::

Thursday, October 6, 2011

क्या कर लोगी पढ-लिख कर..????

नाजुक हाथ में कलम चाहिये
पकड़ा देते खुरपी और गेंती
मन के अन्दर शर्म न आती
ये है उनकी खुद की बच्ची
घर के कहते लोग सब
क्यो करोगी पढ़ाई
तुम्हें नौकरी तो करना नहीं है
करना है निनाण और गुड़ाई........

घर का करो काम
चूल्हे पर रोटी बनाना सीखो
सुबह शाम घास है लाना
यहाँ बैठ कर आँख मत मीचो
कितनी लड़कियाँ पढ़ कर भी
करती है खेत की कटाई
बक बक बातें मत कर
नहीं तो कर दूँगा तेरी पिटाई.......

कसूर माँ बाप का नहीं,
ऐसा है रहन सहन और सोच है कई गांवो की
जहाँ की बेटियाँ खुद
उगाती है पेड़, अपनी छाँव का
ये दुर्दशा गाँव की बेटियों की,
किससे करें वे अच्छी आशा
उनके मन मे एक ही शंका,
कोशिश करना व्यर्थ है मिलेगी वही निराशा.....

छोटी से उमर में ही
पकड़ा देते हैं भैंस की रस्सी
नाजुक हाथ में कलम चाहिये
पकड़ा देते खुरपी और गेंती
मन के अन्दर शर्म न आती
ये है उनकी खुद की बच्ची........

Saturday, April 30, 2011

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको


अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझको

मैं समंदर भी हूँ, मोती भी हूँ, ग़ोताज़न भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुला ले मुझको

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको

ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको

मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे
तू दबे पाँव कभी आ के चुरा ले मुझको

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ " रवि"
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको

Friday, April 29, 2011

माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन
, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।
चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली
,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।
बीवी
, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।
बाँट के अपना चेहरा
, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ

सुख देती हुई माओं को गिनती नहीं आती
पीपल की घनी छायों को गिनती नहीं आती।
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
,
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों
से माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ
जाती हे
सर्दी में मौसम से बचाती, तन के कपडे जैसी माँ
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,







Tuesday, April 26, 2011

अपने दिलो में मुझको जला कर रखना

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।


"रवि" तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में
मुझको जला कर रखना