कहीं मस्जिद की हलचल हे, कहीं मंदिर की बेताबी
मगर तामीर दोनों की, फकत इंसा ही करता है !
मगर तामीर दोनों की, फकत इंसा ही करता है !
अगरचे दोनों मसकन में, खुदा ओ ईश रहते हैं
तो फिर ये आदमी क्यों कर यहाँ, फिरके बदलता है !
यहाँ इमां का सौदा है, खनकते चंद सिक्कों पे
भरम की बात पे देखो, धरम बेमोल बिकता है!
यहाँ हर शख्स प्यासा है, मगर ये प्यास है कैसी
लहू पीकर ही इंसा का यहाँ, इंसा बहकता है!!!!!!!!!!!!!!!!!
यही खुदगर्ज मण्डी है, जिसे तुम दुनिया कहते हो